हिसाब……….

जिसको सपना था मान लिया,
वो सच की ही बुनियाद रहा..

साँसों को जीना कहा गया,
असली जीवन बरबाद रहा…

सुख दुख के आने जाने से,
कुछ उजड़ा, कुछ आबाद रहा…

जुड़ गया, मिला जिससे, उससे,
दिल का ऐसा उन्माद रहा…..

जो प्रेम गीत लब पर मेरे,
मेरे दिल की फ़रियाद रहा…….

पाने खोने का किया हिसाब,
कुछ भूल गये, कुछ याद रहा़….
————–

Published in: on सितम्बर 20, 2013 at 9:15 पूर्वाह्न  Comments (2)  

हे ईश्वर!

प्रार्थना …

हे ईश्वर! बस इतना कर दो, जीवन मे कुछ अवसर भर दो!

सुख-सुविधा और धन-दौलत, इन सबकी मुझको चाह नही,
कांटों की राह पर चलता हूं, पर मुंह से निकली आह नही!
मुश्किल से कब डरता हूं मै, पर उनको थोड़ा कम कर दो!
हे ईश्वर! बस इतना कर दो..

काले सपनो को लिये खड़ी ये रात कभी तो जायेगी,
जिस दिन मुझको भी खुशी मिले, वो सुबह कभी तो आयेगी!
काया से कब थकता हूं मै, मन मे हिम्मत हो ये वर दो!
हे ईश्वर! बस इतना कर दो …

-रचना.

Published in: on अगस्त 9, 2013 at 10:13 अपराह्न  टिप्पणी करे  

किसे पता है……….

आज, अभी ये पल है अपना,
क्या होगा कल किसे पता है..

कर्म करें, ये धर्म है अपना,
क्या होगा फल किसे पता है..

जीवन है तो सुख -दुख होंगे,
कितने, कब -कब, किसे पता है..

जीवित हैं तो मृत्यु होगी,
किस पल होगी किसे पता है …..

सपने देखो, सब कहते हैं,
सच भी होंगे किसे पता है…

जो होना है, वो होता है,
होना क्या है किसे पता है…

Published in: on जुलाई 3, 2013 at 9:36 पूर्वाह्न  Comments (4)  

ज़िन्दगी……

ज़िन्दगी कहते हैं जिसको, सांस का इक सिलसिला है
लगती हमको खूब प्यारी, पर गज़ब की ये बला है!
सूर्य का है साथ थोड़ा, सांझ को हर दिन ढ़ला है,
साथ निश्चित है उसी का, घर मे जो दीपक जला है!
बढ़ रहा वो पांव आगे, जो कि हमने खुद चला है,
भीड़ मे हैं सब अकेले , फिर भी कहते काफ़िला है!
जाने कब किस तरह पलटे, भाग्य मेरा मनचला है,
चैन से जीने न देगा, वक्त का ये ज़लज़ला है!
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Published in: on फ़रवरी 17, 2013 at 10:09 पूर्वाह्न  Comments (4)  

परिवर्तन ( कहानी)

अनुपमा करीब ५ साल बाद अमेरिका से भारत आई थी…. महानगर मे अपने भाई के घर रहते हुए एक दिन उसने बातों बातों मे अपने भाई से उस पुराने गांव जाने की इच्छा जाहिर की, जहां उसके बचपन के कुछ वर्ष बीते थे और उसके भाई का जन्म हुआ था.. ६० के दशक के उत्तरार्ध मे सरकारी नौकरी करने वाले उसके पिता यानि राय साहब का तबादला उस छोटे से गांव मे हुआ था … तब अनुपमा ५ वर्ष की थी … तीन वर्ष तक उसके पिता उसी गांव मे थे.. .. उसके मन मे बचपन के अपने उन तीन वर्षों की कई यादें ताज़ा हो आईं, जो गांव मे बीत थे …. उसकी सहेलियां.. उसकी स्कूल…. उसके घर के आस पास रहने वाले सारे पड़ोसी… आम, नीम और पीपल के कई बड़े पेड़… आदि.. वो स्वच्छंद, उन्मुक्त और निर्मल जीवन…

अनुपमा और उसके भाई ने एक सप्ताहांत उस गांव मे जाने का कार्यक्रम बनाया … अनुपमा को जानकर बेहद हैरानी हुई की करीब २५ साल बाद अब भी उसके गांव मे रेलवे नही है … ..उन्हे गांव से ५० कि.मी. दूर कस्बे मे रेल से उतर कर फिर बस से गांव जाना था … मन मे उत्सुकता लिये अनुपमा इन्तजार करती रही …..आखिर सप्ताहांत का दिन आया और अनुपमा अपने भाई के साथ गांव जाने को निकल पड़ी ….कस्बे मे रेल से उतर कर जैसे ही बस मे सवार हुई…  .. उसे पिछले सालों मे हुए बदलाव की झलक द्खाई देने लगी ….. लोगों का पहनावा, उनकी भाषा, उनके हाथों मे मोबाइल फोन और सड़कों पर दौड़ते दुपहिया वाहन ….

गड्ढों से भरी सड़क पर करीब एक घन्टे के प्रवास के बाद अनुपमा और उसका भाई गांव के बस स्टेशन पर उतरे … २५ सालों मे काफी कुछ बदल गया था … बस स्टेशन पर कई जीप गाड़ियां खड़ी थी जो आस पास के गांवों और कस्बों मे दौड़ती थीं… कई पक्की दुकाने बन गईं थी …पुराने दिनो के विपरीत, जब कि गांव से सारे लोग ही एक दूसरे को जानते थे … आज  सारे चेहरे नये और अनजाने लग रहे थे ….. कुछ दूर पैदल चल कर जब वे अपने पुराने घर की गली मे पहुंचे तब उन्हे अपनी पुरानी काम वाली बाई कमला का घर दिखाई दिया… कमला की और उसके आस पास वालों की रहने की जगह अब भी बहुत कुछ नही बदली थी, बल्कि पहले से भी ज्यादा गंदगी भरी दिखाइ दे रही थी …. उनके नजदीक आते ही कमला के बेटे ने उन्हे पह्चान लिया …. उसने बड़ी खुशी से अपनी पह्चान जाहिर की … बताया कि वो दिहाड़ी मज़दूर का काम करता है, लेकिन अपने बच्चों को स्कूल भेज कर पढ़ाना चाह्ता है ……उन्हे शहर भेजना चाह्ता है ….. उन तीनो ने आपस मे उन दिनो की बातें की जब वे छोटे बच्चे थे और उस पीपल के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर और  स्कूल के मैदान मे खेला करते थे…

वे बतियाते हुए गांव मे आगे की गलियों मे बढ़ रहे थे …..कुछ आगे चलने पर किराने की दूकान मिली जो अब पहले से बिल्कुल ही बदल चुकी थी… जहां पहले सिर्फ एक या दो तरह की टॊफी मिला करती थी, वहां अब पचासों तरह की चॊकलेट्स रखी हुइ थी … लेकिन बनिया अपने वही पुराने अन्दाज़ मे उधार लेने वाले को झिड़क रहा था …………..

 फिर आगे मिला गुप्ता जी का घर जहां अनुपमा का परिवार किराये से रहा करता था ….. अन्दर जाते ही सबसे आगे वाले कमरे मे बैठी गुप्ता जी की मां की ८० वर्षीय आंखों ने कुछ मिनटों तक अनुपमा और उसके भाई को निहारा.. फिर अपने यादे ताज़ा कर  उन्हे पह्चान लिया…. अनुपमा ने अश्चर्य से कहा — दादी ! आप इतने वर्षों बाद भी हमे पह्चान गई!  तो दादी ने तुरन्त कहा हम तुम्हारी तरह शहर वाले नही है, जो आज मिले और कल भूल गये … हम पुराने लोग हैं चाहे कुछ भी बदल जाये तब भी रिश्ते और सम्बन्ध बनाये रखने मे यकीन रखते हैं …. दादी ने तुरन्त अपनी बहुओं, नाती पोतों को बुलाया और सबसे अनुपमा और उसके भाई का परिचय करवाया…. दादी ने बताया कि कैसे जब अनुपमा के भाई का जन्म हुआ था तो उन्होने ही मोहल्ले मे मिठाइ बंटवाई थी….  और भी खूब पुरानी बातें हुई ….. खाने की दावत के बाद गुप्ता जी ने उन पुराने कुछ लोगों को भी अपने घर बुल लिया जो राय साहब को जानते थे…. अनुपमा के भाई ने गांव छोड़ने के बाद अपने शहरी जीवन के बारे मे उन लोगों को बताया .. और अनुपमा ने अपने अमेरिका मे बिताये जीवन के अनुभव उस परिवार के साथ बाटें……….. सभी लोग बेहद आत्मीयता से मिले………… शाम की बस से उन्हे वापस लौट जाना था……..

अनुपमा और उसका भाई गांव से लौटकर बहुत खुश थे …  तकनीकी तौर पर काफी कुछ विकास हुआ था .पहले जहां एक ही सरकारी स्कूल हुआ करता वहां .कुछ अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल खुल गये थे …. गांव के कुछ कुत्ते डॊग और कुछ गायें काउ हो चली थी .. कई पक्की दूकाने और घर भी बन गये थे  लेकिन अव्यवस्था, बिजली कटौती, गन्दगी, कुरीतियों और अशिक्षा से निज़ात पाना अब भी बाकी है ….. यानि कई रूपों से गांव का समृद्ध होना अभी बाकी है……..गांव मे बहुत कुछ बदल गया था.. लेकिन वहां के लोगों के व्यवहार की गर्माहट और अपनापन अब भी नही बदला था ….. अनुपमा को इस बात का ज्यादा अह्सास हुआ क्यों कि जहां पूरा गांव ही एक परिवार की तरह हुआ करता था और वहां वो दुनिया के उस हिस्से मे रह कर आई थी जहां बगल वाले घर मे कौन रहता है यह पता ही हो जरूरी नही … व्यवहार मे रूखापन और ज्यादातर लोग अपने ही आप मे मस्त रहते हैं……..

लेकिन परिवर्तन ही जीवन का नियम है …  और विकास भी ! … पर विकास की होड़ मे हमे ये ध्यान रखना होगा कि विकसित होने के नाम पर हम एकाकी और  स्वार्थी न होते  जाएं तथा अपने जीवन को टेलीविजन, कम्प्यूटर और्र मोबाईल जैसे तकनीकी डिब्बों मे बन्द कर लें …………बल्कि हमारा  समग्र विकास हो और जीवन सरल, सहज और स्वच्छन्द हो  ……………….

रचना बजाज .

Published in: on दिसम्बर 5, 2012 at 8:32 पूर्वाह्न  Comments (2)  

सुनिये एक कहानी.. :)

आप यहां –  मेरे मन की , मेरी कहानी अपनापन  अर्चना चावजी की आवाज़ मे सुन सकते हैं…

Published in: on जुलाई 4, 2012 at 6:12 अपराह्न  टिप्पणी करे  

अपनापन .. ( कहानी )

** जीवन मे कई रिश्ते बनते- बिगडते, उलझते सुलझते रहते हैं. पारिवारिक, कार्यक्षेत्र के, दोस्ती के, और मानवीय संवेदनाओं के. भारतीय समाज मे हर तरह के रिश्ते का अपना एक विशेष महत्व है. अब धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है.
यूं तो सबसे प्यारे खून के रिश्ते होते हैं, फ़िर भी जीवन मे कुछ रिश्ते, दिल से दिल के बन जाते हैं .. ऐसे ही एक रिश्ते की कहानी  है-  अपनापन

फ़ातिमा चाची और आरती दीदी दोनो,  दीप अपार्टमेंट की पहली मन्जिल पर आमने सामने के घरों मे रह्ते थे .आरती दीदी एक स्कूल मे शिक्षिका थी और अपने दो बच्चों के साथ रहती थी. फ़ातिमा चाची एक अधेड़ उम्र की महिला थी, उनकी शादी नही हुई थी, सो वो अकेले ही रहती थी ..एक बहन थी उनकी जो अपने परिवार के साथ कुछ दूर, दूसरी कॊलोनी मे रहती थी … एक भाई और उनका परिवार दूसरे शहर मे रहते थे…. जिस मकान मे वो रह्ती, वो उनके भाई का था .उनके जीवन का खर्च भी उनके भाई , बहन तथा उनका समाज  सम्मिलित रूप से उठाते थे. वो एक पढी लिखी महिला थी…  अकेले होते हुए भी वो जीवटता से भर पूर थी. उन्हे हर तरह का शौक था और उनके घर मे हर तरह का सामान था. अकेले होते हुए भी वो घर को खूब सजा कर रखती.
    बिल्डिंग वाले सारे परिवारों और उनके बच्चों से वे मिल जुल कर रहती … घर के छोटे -मोटे काम वे उनसे करवाती रहती. और हर कोई आते जाते उनके काम खुशी खुशी कर भी देता.. उन्हे तरह तरह के व्यन्जन बनाने का भी शौक था. आरती दीदी से उन्हे विशेष स्नेह था. जब कुछ नया काम करती तो आरती दीदी को जरूर दिखाती. कुछ नया व्यन्जन बनाती, आरती दीदी को जरूर खिलाती. आरती दीदी क्रोशिये की कढ़ाई करती या फ़िर अपनी बेटी के लिये ऊन का स्वेटर बुनती तो फ़ातिमा चाची भी झट उनके पास आकर कहती, आरती दीदी मुझे भी अपने लिये बनाना है, मुझे भी सिखाओ ना! उनकी बढ़ती उम्र की वजह से उन्हे जल्दी कोई बात समझ मे नही आती और वो कई सारी गलतियां करती रहती. कई बार आरती दीदी उन्हे समझाती, कई बार नाराज भी हो जाती और अक्सर अन्त मे हार कर उनका काम वो खुद पूरा करके देती .
           बढती उम्र की वजह से चाची की तबियत थोड़ी नासाज़ रहने लगी थी.. उनके लिये आरती दीदी दवाइयां लाकर देती, जो किसी समाज सेवी संस्था की मदद से सस्ते दामों पर मिल जाती .. एक बार चाची घर मे ही गिर गयी .. जैसे तैसे उठकर आयी आरती दीदी के पास… उनकी तकलीफ़ बढ़्ने पर आरती दीदी ने उनकी बहन को फ़ोन करके बुला लिया .. उन्हे  अस्पताल ले जाया गया.. पता चला की उनकी पैर की हड्डी टूटी है… प्लास्टर चढ़वा कर, एक दो दिन बहन ने अपने घर मे उन्हे रखा और फ़िर वापस उनके घर छोड़ गयी …. जैसे तैसे वो अपना काम कर पाती… ज्यादा तकलीफ़ होने पर आरती दीदी को बुलाती..उनकी चोट का दर्द तो अपनी जगह था, लेकिन उन्हे सबसे ज्यादा जरूरत, किसी के उनके पास होने की थी और आरती दीदी इस जरूरत को बखूबी पूरा करती… अक्सर चाची उनके रिश्तेदारों के मिलने का इन्तजार करती, लेकिन  कोइ मिलने नही आता तो उदास हो जाती … आरती दीदी उनसे कहती – कोइ नही आया तो क्या हुआ मै हूं ना आपके लिये!….चाची कहा करती कि आरती दीदी, तुम्हे अल्लाह ने मेरे लिये ही इस घर मे रहने भेजा है …..चाची को अपने भाई बहनो से भी ज्यादा आरती दीदी पर भरोसा था….
             ईद के दिन चाची सुबह बहुत जल्दी उठकर तैयार हो जाती, उन्हे लगता आरती दीदी कहीं स्कूल के लिये निकल ना जायें … जल्दी से ईद मिलने के लिये आरती दीदी के घर आती, उनके और उनके बच्चों के लिये सिवैंया लेकर आती …कह्ती आरती दीदी आप ही मेरी ईद के लिये गले मिल लो, पता नही मुझसे मिलने कोई आयेगा या नही …..
          यूं ही आपसी स्नेह से उनका जीवन चल रहा था कि एक दिन अचानक, जब आरती दीदी स्कूल जाने के लिये तैयार हो रही थी, तभी चाची उनके घर आई और कहने लगी आज मेरी तबीयत कु्छ ठीक नही लग रही.. रात ही से दिल मे कुछ घबराहट सी है., तुम थोड़ी देर मेरे पास रुक जाओ …. आरती दीदी कुछ देर रुकी , उन्हे दवाई दी फ़िर उन्हे उनके घर सुला दिया… आरती दीदी को लगा कि उनकी तबियत कहीं उनके स्कूल चले जाने के बाद ज्यादा न बिगड़ जाए, इसलिये उन्होने उनकी बहन को खबर कर दी और वे स्कूल चली गयीं………
..दोपहर जब वे  स्कूल से वापस घर लौटी तो उन्हे पता चला कि फ़ातिमा चाची की तबियत ज्यादा बिगड़ जाने से उनकी बहन उन्हे अपने साथ लेकर गयी है…… पता चला कि चाची को अस्पताल मे भर्ती कराया गया है …… आरती जी, अपनी व्यस्तता के चलते एक दो दिन उनकी खबर नही ले पाई.. फ़िर अगले दिन उन्हे रास्ते मे फ़ातिमा चाची की एक रिश्तेदार दिखी तो उन्होने उनसे चाची की तबियत के बारे मे पूछा……..रिश्तेदार की ये बात सुनकर वे स्तब्ध रह गयी कि, चाची का तो अस्पताल मे उसी दिन शाम  को इन्तकाल हो गया था…… उन्हे वहीं से दफ़नाने के लिये ले जाया गया था ….. आरती दीदी को बेहद अफ़सोस हुआ कि वे अन्त समय मे उनसे मिल नही पाई, जबकी चाची उन्हे जरूर याद कर रही होगी ……. चाची की बहन ने आरती दीदी और उनके अन्य पड़ोसियों को खबर करने की जरूरत नही समझी, जिनके साथ वे रहा करती थी ……. सभी पड़ोसियों को बेहद दुख हुआ.. लेकिन वे  करते भी क्या… उन्हे बताया जाय या नही ये चाची के रिश्तेदारों की अपनी मर्ज़ी थी, आखिर वे उनके खून के रिश्तेदार थे!
    चाची के दफ़न होने के साथ ही स्नेह का एक मीठा रिश्ता भी दफ़न हो गया …चाची के रिश्तेदारों के लिये के लिये चाची एक काम थी जो खतम हो गया …………
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Published in: on जून 3, 2012 at 6:49 अपराह्न  Comments (4)  

न जाने कितने हैं…

इस दुनिया मे इन्सानों के रंग न जाने कितने हैं,
उनके जीवन , व्यवहारों के ढ़ंग न जाने कितने हैं.
अपनी अपनी मन्जिल सबकी, अपनी अपनी सबकी राहें,
गिनती को तो है लोग बहुत, पर संग न जाने कितने हैं.
कुछ के सपने सच हो जाते, कुछ अपने सुख को पा जाते,
पर अपनी रूठी किस्मत से दंग न जाने कितने हैं.
छोटी छोटी बातों मे उलझ, मारा मारी करते फ़िरते,
उठा पटक, सीनाजोरी, हुड़दंग न जाने कितने हैं.
है श्वेत रंग शांति का जो, उसकी दिखती अब कमतरता,
हुए लाल क्रोध से जो , बदरंग न जाने कितने हैं.

Published in: on मार्च 31, 2012 at 7:41 पूर्वाह्न  Comments (2)  

छोटी सी बात …

किसी की बात समझ न सके, तो हम ज्यादा न बौखलाएं,
बेहतर है कि हम अपनी समझ को समझाएं !
चुप रहना भी कोइ बुरी बात नही ,
कुछ भी कहकर बात का मज़ाक न बनाएं !
किसी का दुख बांट कर कम न कर सकें, न सही,
कम से कम उसे और न बढाएं !

Published in: on मार्च 29, 2012 at 3:45 अपराह्न  Comments (4)  

गुरु …….

जिसके बल पर हम सफ़ल हुए, वो सब ज्ञान गुरु का है.
है ईश्वर से भी बढ़्कर जो, वो सम्मान गुरु का है.
सच का साथ नही देता और झूठ की राह जो चलता है,
मेरा शिष्य नही होगा , ये अभिमान गुरु का है.
जीवन मे सफ़लता पा करके, जब शिष्य उन्हे न याद करे,
फ़िर भी उसे अच्छा ही कहे, वो ईमान गुरु का है.
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Published in: on मार्च 21, 2012 at 12:01 अपराह्न  Comments (2)