अनुपमा करीब ५ साल बाद अमेरिका से भारत आई थी…. महानगर मे अपने भाई के घर रहते हुए एक दिन उसने बातों बातों मे अपने भाई से उस पुराने गांव जाने की इच्छा जाहिर की, जहां उसके बचपन के कुछ वर्ष बीते थे और उसके भाई का जन्म हुआ था.. ६० के दशक के उत्तरार्ध मे सरकारी नौकरी करने वाले उसके पिता यानि राय साहब का तबादला उस छोटे से गांव मे हुआ था … तब अनुपमा ५ वर्ष की थी … तीन वर्ष तक उसके पिता उसी गांव मे थे.. .. उसके मन मे बचपन के अपने उन तीन वर्षों की कई यादें ताज़ा हो आईं, जो गांव मे बीत थे …. उसकी सहेलियां.. उसकी स्कूल…. उसके घर के आस पास रहने वाले सारे पड़ोसी… आम, नीम और पीपल के कई बड़े पेड़… आदि.. वो स्वच्छंद, उन्मुक्त और निर्मल जीवन…
अनुपमा और उसके भाई ने एक सप्ताहांत उस गांव मे जाने का कार्यक्रम बनाया … अनुपमा को जानकर बेहद हैरानी हुई की करीब २५ साल बाद अब भी उसके गांव मे रेलवे नही है … ..उन्हे गांव से ५० कि.मी. दूर कस्बे मे रेल से उतर कर फिर बस से गांव जाना था … मन मे उत्सुकता लिये अनुपमा इन्तजार करती रही …..आखिर सप्ताहांत का दिन आया और अनुपमा अपने भाई के साथ गांव जाने को निकल पड़ी ….कस्बे मे रेल से उतर कर जैसे ही बस मे सवार हुई… .. उसे पिछले सालों मे हुए बदलाव की झलक द्खाई देने लगी ….. लोगों का पहनावा, उनकी भाषा, उनके हाथों मे मोबाइल फोन और सड़कों पर दौड़ते दुपहिया वाहन ….
गड्ढों से भरी सड़क पर करीब एक घन्टे के प्रवास के बाद अनुपमा और उसका भाई गांव के बस स्टेशन पर उतरे … २५ सालों मे काफी कुछ बदल गया था … बस स्टेशन पर कई जीप गाड़ियां खड़ी थी जो आस पास के गांवों और कस्बों मे दौड़ती थीं… कई पक्की दुकाने बन गईं थी …पुराने दिनो के विपरीत, जब कि गांव से सारे लोग ही एक दूसरे को जानते थे … आज सारे चेहरे नये और अनजाने लग रहे थे ….. कुछ दूर पैदल चल कर जब वे अपने पुराने घर की गली मे पहुंचे तब उन्हे अपनी पुरानी काम वाली बाई कमला का घर दिखाई दिया… कमला की और उसके आस पास वालों की रहने की जगह अब भी बहुत कुछ नही बदली थी, बल्कि पहले से भी ज्यादा गंदगी भरी दिखाइ दे रही थी …. उनके नजदीक आते ही कमला के बेटे ने उन्हे पह्चान लिया …. उसने बड़ी खुशी से अपनी पह्चान जाहिर की … बताया कि वो दिहाड़ी मज़दूर का काम करता है, लेकिन अपने बच्चों को स्कूल भेज कर पढ़ाना चाह्ता है ……उन्हे शहर भेजना चाह्ता है ….. उन तीनो ने आपस मे उन दिनो की बातें की जब वे छोटे बच्चे थे और उस पीपल के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर और स्कूल के मैदान मे खेला करते थे…
वे बतियाते हुए गांव मे आगे की गलियों मे बढ़ रहे थे …..कुछ आगे चलने पर किराने की दूकान मिली जो अब पहले से बिल्कुल ही बदल चुकी थी… जहां पहले सिर्फ एक या दो तरह की टॊफी मिला करती थी, वहां अब पचासों तरह की चॊकलेट्स रखी हुइ थी … लेकिन बनिया अपने वही पुराने अन्दाज़ मे उधार लेने वाले को झिड़क रहा था …………..
फिर आगे मिला गुप्ता जी का घर जहां अनुपमा का परिवार किराये से रहा करता था ….. अन्दर जाते ही सबसे आगे वाले कमरे मे बैठी गुप्ता जी की मां की ८० वर्षीय आंखों ने कुछ मिनटों तक अनुपमा और उसके भाई को निहारा.. फिर अपने यादे ताज़ा कर उन्हे पह्चान लिया…. अनुपमा ने अश्चर्य से कहा — दादी ! आप इतने वर्षों बाद भी हमे पह्चान गई! तो दादी ने तुरन्त कहा हम तुम्हारी तरह शहर वाले नही है, जो आज मिले और कल भूल गये … हम पुराने लोग हैं चाहे कुछ भी बदल जाये तब भी रिश्ते और सम्बन्ध बनाये रखने मे यकीन रखते हैं …. दादी ने तुरन्त अपनी बहुओं, नाती पोतों को बुलाया और सबसे अनुपमा और उसके भाई का परिचय करवाया…. दादी ने बताया कि कैसे जब अनुपमा के भाई का जन्म हुआ था तो उन्होने ही मोहल्ले मे मिठाइ बंटवाई थी…. और भी खूब पुरानी बातें हुई ….. खाने की दावत के बाद गुप्ता जी ने उन पुराने कुछ लोगों को भी अपने घर बुल लिया जो राय साहब को जानते थे…. अनुपमा के भाई ने गांव छोड़ने के बाद अपने शहरी जीवन के बारे मे उन लोगों को बताया .. और अनुपमा ने अपने अमेरिका मे बिताये जीवन के अनुभव उस परिवार के साथ बाटें……….. सभी लोग बेहद आत्मीयता से मिले………… शाम की बस से उन्हे वापस लौट जाना था……..
अनुपमा और उसका भाई गांव से लौटकर बहुत खुश थे … तकनीकी तौर पर काफी कुछ विकास हुआ था .पहले जहां एक ही सरकारी स्कूल हुआ करता वहां .कुछ अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल खुल गये थे …. गांव के कुछ कुत्ते डॊग और कुछ गायें काउ हो चली थी .. कई पक्की दूकाने और घर भी बन गये थे लेकिन अव्यवस्था, बिजली कटौती, गन्दगी, कुरीतियों और अशिक्षा से निज़ात पाना अब भी बाकी है ….. यानि कई रूपों से गांव का समृद्ध होना अभी बाकी है……..गांव मे बहुत कुछ बदल गया था.. लेकिन वहां के लोगों के व्यवहार की गर्माहट और अपनापन अब भी नही बदला था ….. अनुपमा को इस बात का ज्यादा अह्सास हुआ क्यों कि जहां पूरा गांव ही एक परिवार की तरह हुआ करता था और वहां वो दुनिया के उस हिस्से मे रह कर आई थी जहां बगल वाले घर मे कौन रहता है यह पता ही हो जरूरी नही … व्यवहार मे रूखापन और ज्यादातर लोग अपने ही आप मे मस्त रहते हैं……..
लेकिन परिवर्तन ही जीवन का नियम है … और विकास भी ! … पर विकास की होड़ मे हमे ये ध्यान रखना होगा कि विकसित होने के नाम पर हम एकाकी और स्वार्थी न होते जाएं तथा अपने जीवन को टेलीविजन, कम्प्यूटर और्र मोबाईल जैसे तकनीकी डिब्बों मे बन्द कर लें …………बल्कि हमारा समग्र विकास हो और जीवन सरल, सहज और स्वच्छन्द हो ……………….
रचना बजाज .